एक 35 वर्षीय विधि छात्र को ब्रोशर के नियमो के विरुद्ध विधि महाविद्यालय में प्रवेश मिला जिसको की पहले सेमेस्टर परीक्षा पास करने के बाद भी उसका प्रवेश रद्द कर दिया गया था | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने छात्र को 5 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया |
जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस विकास बधवार की पीठ ने कहा की छात्र को यह जानकारी नहीं थी और न ही उसने महाविद्यालय के साथ कोई धोखाधड़ी की है,” परन्तु यह आश्चर्य की बात है की विधि महाविद्यालय ने न केवल बहुत ही लापरवाही से काम किया, बल्कि छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हुए केवल नामांकन तथा प्रवेश का आचरण भी किया है |”
याचिकाकर्ता को द्वितीय वर्ष में परीक्षा देने की अनुमति सम्बंधित राहत को न्यायालय ने कहा की यह नहीं दी जा सकती, क्योंकि उसका प्रवेश ही निर्धारित नियमो जो की ब्रोशर में लिखा था उसके विरुद्ध था | इसके अलावा, चूंकि अपीलकर्ता -याचिकाकर्ता द्वारा प्रवेश नियमो को चुनौती नहीं दी गयी है,अतः हम उस पर गुण दोष के आधार पर विचार नहीं कर सकते |
जहां सवाल अपीलकर्ता के मुआवजे के अधिकार का न्यायालय ने इस मामले में पाया कि रिट न्यायालय ने केवल 30,000 रूपए का मुआवजा दिया था, जिसके खिलाफ़ विश्वविद्यालय ने कोई चुनौती नहीं दी थी | गलती लॉ कॉलेज की ही पायी गयी क्योकि वो ही है जो आवेदनों पर कार्रवाई करता है और प्रवेश देने के लिए विश्वविद्यालय को अपनी सिफारिशें भेजता है अतः गलती सिर्फ लॉ कॉलेज की है |
जब लॉ कॉलेज के वकील से पूछा गया तो उसने कहा कॉलेज 5 लाख देने की स्थिति में नहीं था | जब की उक्त मुआवजा देते समय न्यायालय ने पाया कि
“हमने उक्त पहलु पर अपना विचार दिया है जहा कॉलेज ने यह माना है कि याचिकाकर्ता- रिट अपीलकर्ता ने धोखाधड़ी नहीं की थी बल्कि उसने तो सारे प्रासंगिक दस्तावेज दिए थे कॉलेज की गलती के कारन उसे प्रवेश दिया गया था, तो अपीलकर्ता को उसके शैक्षणिक करियर को खतरे में डालने तथा उसको बर्बाद करने के लिए मौद्रिक मुआवजे के तौर पर दिए जा रहे 5,00,000/- रुपए की राशि उचित है और अत्यधिक नहीं है।”
तदनुसार, हमने केवल रिट न्यायालय के आदेश को केवल उसी सीमा तक संशोधित किया है तथा अपीलकर्ता को द्वितीय वर्ष की परीक्षा में बैठने सम्बंधित कोई निर्देश नहीं जारी किया गया है |
केस टाइटल – अजय कुमार पांडेय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य